बुरे कर्मों से बाज आ जाओ और तौबा कर लो! वरना मालिक को तौबा करवाना आता है | सुधारने से पहले खुद सुधर जाओ तो अच्छा है..अधिक पढ़ें:-
मालिक के नाम का जाप, इन्सान को वो निगाह बख्शता है जिससे कि उसे आत्मिक संतुष्टि और परमानंद के नज़ारे मिलने शुरू हो जाते हैं। जैसे जैसे इंसान अल्लाह, वाहेगुरू, राम का नाम जपता चला जाता है वैसे वैसे उसके पाप कर्म भी कटने शुरू हो जाते हैं।
पूज्य गुरु संत डॉक्टर गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि पुराने ज़माने में लोग आत्मिक सुख-शांति, अंदरूनी ताज़गी और परमानंद पाने के लिए जंगलों में जाया करते थे और वहां पर खुद रोटी पकाना, घर बनाना, हार्ड वर्क करना और मालिक की याद में घण्टों बैठे रहना और फिर तब जाकर वो मालिक के दर्श दीदार के काबिल बन पाते थे, पर फिर भी उन्हें इस बात की गारंटी नहीं होती थी कि वो मालिक के अनहद नज़ारे देख पाएंगे या नहीं।
लेकिन आज के वातावरण के अनुसार, जहां लोगों पास खुद के बच्चो से दिल की बातें करने और उनके साथ बैठने का वक्त नहीं है, ऐसे समय में परमपिता शाह सतनाम जी महाराज ने इतना आसान तरीका बताया है कि अनपढ़ से अनपढ़ और बच्चा से बच्चा भी मालिक के नाम का जाप कर सकता है और वो ऐसी खुशियाँ हांसिल कर सकता है जोकि उसने कभी सपनों में भी सोची ना हो। लेकिन अगर फिर भी इंसान सुमिरन ना करे, मैथड ऑफ़ मैडिटेशन का लगातार जाप ना कर पाए, तो यह उसके पाप कर्म हैं या यूँ कह लीजिये कि उसके मन की वजह से है।
गुरु जी फरमाते हैं कि लोगों के पास वक्त तो है जोकि वो कहीं ना कहीं तो बिता रहे हैं लेकिन उनके पास सुमिरन करने के लिए समय नहीं है। गपशप मारने, सास-बहू की चुगलियाँ करने और हर टाइम किसी ना किसी की टांग खिंचाई करने के लिए भी आपके पास बहुत समय होता है, लेकिन जब भगवान की याद में बैठना हो तो वो बोझ लगता है, आपको नींद आती है। ये तो सरासर फ़िज़ूल की बातें हैं।
जब आपको भगवान से कोई काम होता है या कोई प्राकृतिक आपदा जैसे तेज़ बारिश, तूफान या भूकंप आता है तो उस समय क्यों आप भगवान का नाम जपते हैं? क्या इसलिए कि भगवान तो है, या इसलिए कि आपको अपनी जान की कम और खुद के बच्चों की जान ज़्यादा प्यारी होती है? आपको भगवान के नाम का भूत तब क्यों चढ़ता है जब कोई भयानक मुसीबत आ खड़ी होती है।
सबसे पहले तो आप चला रहे होते हैं 24-घण्टे अपना फ़ोन और फ़ोन के चलते चलते ही सभी काम जैसे नहाना धोना, टॉयलेट जाना, एक हाथ से खुद रोटी खाना और दूसरे से फ़ोन में जिससे बात कर रहें हैं उसे रोटी खिलाना, घर पे अगर कोई दोस्त मित्र आ जाए तो उससे गपशप मारना, और औरतों की बात करें तो अगर उनकी कोई सहेली आ जाए तो उससे अपने पति, सास-ससुर की निंदा चुगली शुरू करना जैसे ज़रूरी काम करते रहते हैं। लानत है आप पर अगर एक सेवादार होकर आप ऐसे काम करते हैं।
गुरु की फरमाते हैं कि एक तरफ तो आप सेवादार कहलाते हैं और दूसरी तरफ बुरे कर्म करते हैं, यह सही नहीं है। आप लोगों से भले तो वो जो सत्संग में नहीं आते या सत्संग नहीं सुनते, क्योंकि वो अनजान है। जैसे एक डॉक्टर अगर जहर खाता है तो वो बहुत बड़ा गुनाहगार है और अगर वही जहर कोई अनजाने में या बचपने में खा जाता है तो वो एक अलग बात है। हालंकि है तो वो भी गुनाह, क्योंकि आत्मघाती महापापी। लेकिन डॉक्टर को तो पता है कि यह जहर है और अगर वो खाएगा तो क्या हो सकता है।
उसी तरह एक सत्संगी को भी पता होता है कि कौन सा काम बुरा है और कौन सा सही, वो अलग बात है कि आप बाहर नहीं दिखाते लेकिन अंदर से तो आपको भनक लग ही जाती है कि आप क्या और क्यों करने जा रहे हो। लाहनत है ऐसे लोगों पर जो थोड़े से मज़े के लिए अपने आप को बर्बाद कर लेते हैं व अपने परिवार और खुद की इज्जत पर कालिख मलवा बैठते हैं।
सतगुरु राम को 100% शुद्ध भावना चाहिए, ये कोई आपका काम धंधा नहीं, जिसमें आप जो चाहो, जब चाहो और जैसा चाहो मिलावट कर दिया और भगवान को सौंप दो। वो भगवान है, सर्व-शक्तिमान है जिसने कि तुझे बनाया, तेरे शरीर को डिजाइन किया ना कि तूने उसे बनाया, वो अलग बात है कि दुनिया ने अपनी ज़रूरत के हिसाब से भगवान भी अलग अलग रखें हुए हैं और उन्हें डिजाईन किये हुए हैं।
इसलिए बुरे कर्मों से बाज आ जाओ, तौबा कर लो! वरना मालिक को तौबा करवाना आता है। अच्छा है कि अपने आप बुरे कर्मों से तौबा करके छोड़ दो क्योंकि अगर वो छुड़वाऐगा तो सारी दुनिया देखेगी और तब आप मुहँ छिपाते घूमोगे, लेकिन तब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गयी खेत।
बनके प्रेमी फेर - दिल नूं डलौना की, अगे नूं वधा के पैर - पीछे नूं हटौना की
गुरु जी फरमाते हैं कि या तो आप भक्ति मार्ग पर कदम ही ना रखते लेकिन अगर रखा है तो ऐसा टीका कर रखो कि बुराई का बाप भी आ जाए तो भी वो आपके कदम आपकी जड़ों से हिला ना पाए। क्योंकि सिर्फ वही पेड़ ऊंचाइयों को छूते हैं जिनकी जड़ें हमेशा धरती से जुडी रहती हैं अर्थात सिर्फ वही इंसान प्रेमी कहलाने और बुलंदियों को हांसिल करने के लायक है जो अपने सतगुरु के वचनों पर अमल करे और मन के बहकावे में आकर कोई भी उल्टा सीधा काम ना करे जिससे कि उसके गुरु, माता-पिता और आने वाले कुलों का नाम मिट्टी में मिल जाए।
इसलिए हर बार आपको समझाते हैं कि प्रेमी बनो तो तन, मन और धन तीनों से, ताकि आप क्रोध, लोभ, मोह, काम-वासना और अहंकार के जाल में फंस ना पाएँ। हमेशा अपने तन यानि शरीर को मानवता भलाई के कार्य जैसे महासफाई अभियान आदि के लिये तैयार रखो | आपका मन जोकि सबसे बड़ा और खतरनाक दुश्मन है हमेशा उस पर राम-नाम की लगाम कसे रखो, ताकि वो कभी भी अपनी हद पार ना करे | और तीसरा है आपका धन-रुपया जोकि खर्च करने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए उनके लिए जिनके पास पहनने के लिए कपड़े नहीं हैं, पीने के लिए साफ़ पानी नहीं है, सांस लेने के लिए शुद्ध हवा नहीं है, पढ़ने के लिए पैसा नहीं है और पैसा कमाने के लिए कोई काम नहीं है।