साहिल के सुकून से किसे इंकार है लेकिन तूफ़ान से लड़ने का मज़ा ही कुछ अलग है ...





इस घोर कलयुग में लोग अन्य काम-धन्धों में मस्त हैं लेकिन मालिक की भक्ति इबादत कोई भागों वाला ही कर पाता है या जो इन्सान अपनी खुदमुख्तारी (independency) का फायदा उठाते हुए सत्संग सुनते हैं, अल्लहा, वाहेगुरु की याद में बैठते हैं, मालिक उन्हें हिम्मत देते हैं और वो मालिक की भक्ति इबादत में लग जाते हैं.


पूज्य पिता संत गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सान फरमाते हैं की जब तक इन्सान सत्संग में नहीं आता तब तक उसे पता नहीं चलता कि उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं. सत्संग में आने से पहले एक इन्सान वही करता है जो उसका मन कहता है.  लेकिन सत्संग में आने से तमाम खुशियाँ और खुशियों का मालिक ‘अल्लहा=राम=भगवान’ उस इन्सान को मिल जाता है. सत्संग सुनने के बाद जब कोई जीव गुरु-पीर द्वारा फरमाए वचनों पर अमल नहीं करता तो इससे उसके बुरे कर्म कटते जरुर हैं लेकिन अंदर-बाहर से उतनी खुशियाँ नहीं मिल पाती जितनी कि इन्सान चाहता है.  क्योंकि सत्संग में आकर एक कान से सत्संग सुनना और दुसरे कान से निकाल देना, ये सच्ची भक्ति नहीं है.

इसलिए गुरुमंत्र दिया जाता है जिसका जाप करके इंसान अपने मन से लड पाए. गुरुमन्त्र का मतलब ‘गुरु का मन्त्र’ नही होता बल्कि जो मन्त्र बिना कोई धन-दौलत लिए अज्ञानता के अँधेरे में ज्ञानता का प्रकाश जला दे उसे को असली गुरुमंत्र कहा जाता है.   





गुरुमन्त्र ले लेने से मृत्यु के बाद इन्सान की आत्मा का कल्याण होता है, वो जन्म-मरण के चक्करों से मुक्त हो जाती है लेकिन जिंदा रहते हुए जो खुशियाँ, जो परमानैंट आनंद हर इन्सान चाहता है वो उसे हांसिल नहीं हो पाती. अगर कोई चाहता है कि उसे कोई टेंशन ना हो, तो जरूरी है कि वो इन्सान सुमिरन करे.

सुमिरन करने में कोई जोर नहीं लगता

Dr. MSG फरमाते हैं कि सुमिरन कोई बोझ या सामान नहीं है जिसे उठाकर आपको मीलों दूर चलना पड़े बल्कि सुमिरन तो वो इंजेक्शन है जो लगने के बाद तुरंत अपना असर दिखता है और आपके जन्मों-जन्मों के संचित(इकट्ठे) हुए बुरे कर्मों का भार अपने सर उठा लेता है और उन्हें जड से खत्म कर आपको नवजीवन प्रदान करता है .

सुमिरन करने के लिए कुछ छोड़ने की जरूरत नहीं, कोई कपड़े बदलने की जरूरत नहीं और ना ही कोई तांत्रिक के पास जाने की जरूरत क्योंकि जिसे पाने के लिए आप भटक रहे हैं वो खसम आपके अंदर बैठा है. जो व्यक्ति अंत:करण से तड़पकर, व्याकुलता से सुमिरन करते हैं, वो मालिक के नजारे कण-कण और जर्रे- जर्रे में 100% लिया करते हैं.

असली जोर तो मन से लड़ने पर लगता है





किसी ने लिखा है:
साहिल के सुकून से किसे इंकार है लेकिन तूफ़ान से लड़ने का मज़ा ही कुछ अलग है ...
गुरु जी फरमाते हैं कि जब कोई इन्सान अच्छा काम करता है तो ऐसा हो नहीं सकता कि उसके रास्ते में दुःख और तकलीफें ना आएँ. यह बात बिलकुल सच है कि सुमिरन करने वालों की राह में लोग अडचने पैदा करते हैं लेकिन मालिक का नाम न कभी रुका था, न अब रुका और ना ही कभी रुकेगा. जितनी परेशानियाँ, जितनी अड़चने ज्यादा आएंगी उससे कई गुणा ज्यादा अल्लहा,वाहेगुरु का नाम चलता था, चल रहा है और आगे भी जरुर चलेगा.


राम के नाम में वो शक्ति है जो तूफान तो क्या, प्रलय-महाप्रलय भी क्यों ना आ जाए लेकिन जिसका हाथ एक बार उस मालिक ने पकड़ लिया तो किसकी क्या हिम्मत कि कोई हमे अपनी ड्यूटी से टस-से-मस भी करके दिखा दे. तो भाई अगर मालिक को मंजूर होता है तभी राम-नाम का प्रचार होता है. वो धुन, अनहद-नाद जो आपके अंदर चल रहा है, आप जैसे ही उससे जुड़ेंगे तो वो अंदर-बाहर से उस दया-मेहर, रहमत से आपको मिला देगा जो तमाम गम, चिंता परेशानियों को मिटाते हुए  आपको खुशियों से मालामाल कर देगी..

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