मन है तो दो अक्षरों का लेकिन नचा इसने त्रिलोकियों को रखा है, इससे लड़ना सीखो.
मेरा पढ़ने का मन नहीं करता, काश कोई तरीका होता जिससे मैं मिनटों में अमीर बन जाता, काश मेरी कोई girlfriend होती, काश मेरा कोई boyfriend होता, काश कोई होता जो मुझे समझ पाता, काश वो दिन आए जब मैं लोगों को दिखा पाऊँ कि उनकी असली औकात क्या है, काश मेरी घरवाली सुंदर होती... इत्यादि ये सब मन की काली करतूतें हैं।
इंसान का मन जब बिगड़ने पर आता है तो वो किसी की बात मानना तो दूर, किसी की बात सुनने को भी राजी नहीं होता। जब इंसान मन का गुलाम हो जाता है अर्थात सिर्फ मन के दिखाए रास्ते पर चलता है तो वो बड़ी अजीबों-गरीब हरकतें करने लग जाता है। वह इंसान ना तो खुद खुश रह पाता है और ना ही दूसरों को खुशी दे पाता है व उस इंसान को किसी की कोई भी बात नहीं भाती।
पूज्य गुरु संत डॉक्टर गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि मन वो तीखी छूरी है जो बाहर से दिखने में चाहे छोटी है लेकिन वह इतनी तीखी है कि इसकी नोक पर तीनो लोकों के जीव नाचने को तैयार हो जाते हैं। मन के बहकावे में कभी भी मत आओ। जब कभी आपका मन आपसे कुछ करने से कहे और आपको लगता है कि वो काम गलत है, तो आप वहाँ से भाग जाओ यानी कोई दूसरा काम करने में व्यस्त हो जाओ, जैसे: उस सुप्रीम पावर (अल्लहा-मालिक) का शुक्रिया करो जिसने आपको ज़िन्दा रहने के लिए सांसे दी, घरेलू कामों में अपने माता-पिता का सहयोग दो, किसी अनजान व्यक्ति की मदद कर दो, पशु-पक्षियों के लिए दाना-पानी रख दो या कोई भी ऐसा काम करो जिसे करने पर आपको खुद पर घिन न आए अर्थात वो काम करें जो आपको अच्छा महसूस करवाए।
इसलिए अगर आप मन की 'क्यों-किन्तु-परन्तु' से बचना चाहते हैं तो सेवा करने के साथ-साथ सुमिरन भी करो । धीरे-धीरे चलते-फिरते, उठते-बैठते या काम-धन्धा करते 24 घण्टों में से से सिर्फ 15-20 मिनट ही मालिक का नाम जपें । मालिक का नाम जपना आपकी मजबूरी नहीं आपकी ज़रूरत है । जिस तरह कोई भी इंसान पानी पिये बिना ज़िन्दा नहीं रह सकता उसी तरह अगर कोई इंसान अंदरूनी सुख-चैन चाहता है तो उसे सुमिरन करना ही होगा ।
अगर आप दिन में सिर्फ 15-20 मिनट ही उस मालिक की याद में लगाएंगे तो यकीनन आपका मन आप पर हावी नहीं होगा और मालिक से आपका प्यार-मोहब्बत कई गुणा दिन-रात बढ़ता ही चला जाएगा और इस तरह एक दिन आएगा जब आप खुशियाँ पाने के हकदार बन जाएंगे।
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