इंसान के दुखों का कारण और निवारण केवल सच्चा संत ही बता सकता है | जानिए क्यों और कैसे :-
संत कौन होते हैं? उनका क्या मकसद होता है :-
सर्वधर्मों के अनुसार संत पीर-फ़क़ीर वो खुदा के बंदे होते हैं जो भगवान की बातें, करिश्मे व मालिक के नाम की चर्चा करते हैं । वे अन्य लोगों को समझाते व बताते हैं कि उनके लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा । संत डॉ गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि संत केवल अपने विचार-सुझाव दूसरों से साँझा करते हैं न कि उन पर अपने विचारों को थोपते हैं, आगे लोगों का मानना ना मानना उनकी मर्ज़ी होती है । एक असली संत, पीर-फ़क़ीर वही होता है जो हमेशा उस मालिक=रब=वाहेगुरू=गॉड, जिसने सारी दुनिया को बनाया, उससे दूसरों का भला मांगे और ऐसे कर्म करे जो कि हमारी युवा पीढ़ी और पूरे समाज के लिए एक मिसाल बन सके । एक सच्चा सूफी संत कभी वो कर्म नहीं करता जो धर्मों के असूलों से बाहर हो, वो तो हर समय मालिक की औलाद का भला मांगने में ही लगे रहते हैं । जिस प्रकार एक माँ अपने बच्चे का हर पल साया बनकर उसका ध्यान रखती है ताकि उसके बच्चे को कोई चोट या तकलीफ न हो , उसी तरह पूरी सृष्टि के इंसान व मालिक द्वारा बनाई गयी हर एक चीज़ संतो के अपने बच्चों की तरह होती है और वे हमेशा उन मौकों की फ़िराक में रहते हैं जिनसे पूरी मानवता की भलाई हो सके । सन्तों के लिए ये मायने नहीं रखता कि दुनिया उनके बारे में क्या सोचती या क्या कहती है? उनके लिए तो सिर्फ दो ही चीज़ मायने रखती हैं: पहला समाज की भलाई और दूसरा अपने गुरु की सिखाई, इसके इलावा उन्हें दुनियादारी की बातों में कोई रूचि नहीं होती ।
अंदर से इतने मज़बूत बनो कि कोई तुम्हें तोड़ ना पाए :-
Image source : www.wikihow.comसंत डॉक्टर गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सान फरमाते हैं कि यह कलियुग का समय है, लोग संतो के वचनों को सुनते तो हैं लेकिन जब वचनों पर अमल करने की बात आती है तो मन बहकाना शुरू कर देता है, तो कभी दुनिया गुमराह करना । लेकिन इन्सान को पता होना चाहिए कि यही चीज़े तो उसे मालिक के दर्शन करने से दूर करती हैं । इसलिए इन्सान को अंदर से मजबूत रहना चाहिये व हर वक्त उस काल-मन को कहते रहना चाहिये कि तू शैतान है, तू चाहे कितना ही बड़ा क्यों न हो, तू चाहे कितने ही ज़ुल्म मुझे दे ले लेकिन मेरा भी कोई है जिसके सामने तेरी हवा टाइट हो जाती है, कोई है जिसके सामने आने से तू तो क्या ! तेरा बाप भी घबराता है, और वो है मेरा गुरु, मेरा भगवान, जो तब मेरे साथ होता है जब सब दूर होते हैं, वो तब मुझे रोता देख चुप करवाता है जब कोई और मुझ पर हँस रहा होता है, एक वो ही तो है जिसका नेटवर्क बिना रेंज के भी काम करता है । पर क्योंकि ये कलयुग है इसलिए इन्सान दिन प्रतिदिन मालिक से दूर होता जा रहा है । आज के इन्सान को ये समझ नहीं कि अगर वो गुरुओं की बताई बात पर अमल नहीं करेगा तो कैसे लाभ होगा ? जिस प्रकार स्कूल या कॉलेज में अध्यापक द्वारा पढाये गये पाठ को अगर विद्यार्थी घर आकर नहीं पड़ेगा तो उसे कैसे पता चलेगा कि कक्षा में चल क्या रहा है ! इसी प्रकार अगर आप चाहते हो कि आप रूहानियत की दुनिया से वाकिफ हों तो जरूरी है कि आप लगातार शुरुवात में सुबह-शाम सिर्फ 15-15 मिनट ही उस परमात्मा का नाम जरुर जपें ।
इन्सान अपने कर्मों का खुद जिम्मेवार है :-
Image source :www.azquotes.comआप जी फरमाते हैं कि 'जो इन्सान बेहद प्यासा हो, रेगिस्तान में पानी के लिए इधर-उधर भटक रहा हो और अगर उसे बताया जाए कि तू इस रास्ते से होकर इस जगह पर जा तो तुझे वहां पानी मिलेगा । लेकिन अब ज़रा सोचो ! अगर वो उस रास्ते जाए ही ना जिस रास्ते पर जाने के लिए उसे कहा गया है तो कहाँ से उसको पानी मिलेगा, कहाँ से उसको वो बहारें मिलेगीं जो उसने कभी सपने में भी नहीं सोची होंगी । फिर जब आखिरकार वो मन के बताये रास्ते पर चल पड़ता है और मंजिल तक नहीं पहुँच पाता तो ठोकर खाता है और ठोकर खाने के बाद खुद को दोष न देकर गुरु को दोष देने लगता है कि तूने ऐसा क्यों किया । अब बताओ इसमें कहाँ कोई गुरु का दोष है ? बात आपने गुरु की नहीं मानी और उल्टा दोष भी उसी की दे रहें हैं । इसी तरह ना जाने इंसान कितनी बार खुद गलत काम करता है और जब उसकी दाल नहीं गलती अर्थात उसका मन चाहा काम पूरा नहीं होता तो भगवान को दोष देने लगता है । इसलिए आपको हर वक्त कहते हैं जितने भी स्वास आपके पास हैं, उसमे भक्ति-इबादत करो तो यकीनन आप इस अनमोल जन्म का फायेदा उठा पाएँगे और आज नहीं तो कल मालिक के दर्श-दीदार करके दोनों जहान की खुशियों के हक़दार जरुर बन जाएँगे' ।
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Dhan Dhan satguru Tera hi aasra ji
जवाब देंहटाएंधन-धन सतगुरु तेरा ही आसरा
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